गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

अविनाश कुमार सिंह की कवितायें

        
         





                       आज सिताब दियारा ब्लॉग पर अविनाश कुमार सिंह की कुछ कवितायें



एक ....
चंपी

ईश्वर किस सैलून में जाता होगा
किस उस्तरे से बनती होगी
उसकी हजामत
और निकाले जाते होंगे
नाक के बाल
किस महीन धार से
कलम के सफ़ेद बाल छंटते होंगे और
चंपी होती होगी

क्या हज्जाम से ब्लेड बदलने को
ईश्वर जिच करता होगा
डरता होगा
एड्स से और
ईश्वर के प्यादे भोजन सूँघने की तरह
ब्लेड सूँघते होंगे
और पचा जाते होंगे कि
मंदिर के पिछवाड़े मिले
ईश्वर के औरस की नाल
इसी ब्लेड से काटी गयी थी
ईश्वर आश्वस्त होता होगा
आईने को देखते हुए
कि नाक के बाल
उतने ही नरम हैं अभी
जितनी चंपी.  


दो ...

सूतक

शहर के सबसे सुंदर पेड़ का नाम
जाना नहीं जा सका है
चीन्हा नहीं जा सका है
शहर के सबसे संभावनाशील कवि के
भूरे रंग की बंडी को
शहर इस ज्ञान से भी मरहूम है कि
नदियां बहते वक़्त ज्यादा सुंदर दिखती हैं
उसे यह भी नहीं पता कि
दलमा की चोटी पर बैठा बूढ़ा आदिवासी
गांव के शहर में तब्दील होने के अंतराल का
सबसे बांका जवान था
शहतूत के जंगल से वह
जवानी की दवा लाता था
शहर के सबसे संभावनाशील कवि ने
दवा चखी थी
तब से वह जंगल पर सबसे सुंदर
गीत लिखता है
भूरे रंग की बंडी पर
गहरे काही रंग की कलम
उसे शहतूत का सबसे चमकीला
जंगल बनाये रखती है
कि शहर के सबसे सुंदर पेड़ का नाम
भूरी बंडी वाले कवि ने ही
गुलनार’ रखा था और
कविता वाली आखिरी किताब में
‘गुलनार’ की अज्ञात हत्या के लिए
शहर के पातिशाह पर
शंका जाहिर की थी

गुलनार’ वाली काली सड़क का नाम
शहर के पातिशाह ने
दिवंगत कवि की याद में
डायग्नल रोड’ रखा है
लोग डायग्नल रोड’ पर
इक्कीसवीं सदी का सूतक ओढ़े रेंगते हैं
शहतूत
गुलनार और
जंगल
दिवंगत कवि की आखिरी किताब के साथ
ठहरी नदी की जलकुंभियों में
उलझे पड़े हैं.



तीन ...

ठेका मजदूरों के ज़ानिब

चले जा रहे हैं
सायकिलों पर देह धरे
कैरियर में टांगे टिफिन
जोरू का आखिरी पेटीकोट
प्लास्टिक में प्याज और मिर्च हरी
किसी गुमनाम दर्ज़ी की तरह
चिप्पियाँ और पैबंद
चिपकाते हुए
आत्मा पर.

सपने किसी काली चादर से
अंधे हैं और
तारों को अब सुनायी नहीं देता
गूँगी दिशाओं के सन्नाटे से
दलक जाती है देह जब
पेट पकड़ कर रोता है
मुन्ना
वे ठोक देते हैं पीठ
भरोसे से
कि सो जाती है भूख फिर से, और
मुन्ना सपने में चाँद को
रोटी में ढलते देख ही लेगा
ठेका मजदूर
सायकिल
कैरियर
पेटीकोट और
मुन्ने की आत्मा को
खुदा की नजर से
बचाते है
मुन्ने के एक पैर की चप्पल
पिछले पहिये पर
लटकाकर चलते हैं      


परिचय और संपर्क

अविनाश कुमार सिंह

१० अक्टूबर १९८४ में चन्दौली (यू.पी.) में जन्म
परिकथा, संवदिया, पक्षधर, आरोह, प्रभात खबर (दैनिक) में कविताएँ व आलेख प्रकाशित
इस्पातिका नामक छमाही शोध पत्रिका का संपादन व प्रकाशन
पता : ३, न्यू स्टाफ क्वार्टर्स, को-ऑपरेटिव कॉलेज कैम्पस, सी.एच.एरिया, बिष्टुपुर, जमशेदपुर, झारखण्ड ८३१००१ मो. ०९४७१५७६४०४


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